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Book 13 in English

The Mahabharata in Sanskrit

Book 13
Chapter 95

  1 [भ]
      अथात्रि परमुखा राजन वने तस्मिन महर्षयः
      वयचरन भक्षयन्तॊ वै मूलानि च फलानि च
  2 अथापश्यन सुपीनांस पाणिपादमुखॊदरम
      परिव्रजन्तं सथूलाङ्गं परिव्राजं शुनः सखम
  3 अरुन्धती तु तं दृष्ट्वा सर्वाङ्गॊपचितं शुभा
      भवितारॊ भवन्तॊ वै नैवम इत्य अब्रवीद ऋषीन
  4 [वसिस्ठ]
      नैतस्येह यथास्माकम अग्निहॊत्रम अनिर्हुतम
      सायंप्रातश च हॊतव्यं तेन पीवाञ शुनः सखः
  5 [अत्रि]
      नैतस्येह यथास्माकं कषुधा वीर्यं समाहतम
      कृच्छ्राधीतं परनष्टं च तेन पीवाञ शुनः सखः
  6 [विष्वामित्र]
      नैतस्येह यथास्माकं शश्वच छास्त्रं जरद गवः
      अलसः कषुत परॊ मूर्खस तेन पीवाञ शुनः सखः
  7 [जमदग्नि]
      नैतस्येह यथास्माकं भक्तम इन्धनम एव च
      संचिन्त्य वार्षिकं किं चित तेन पीवाट शुनः सखः
  8 [कष्यप]
      नैतस्येह यथास्माकं चत्वारश च सहॊदराः
      देहि देहीति भिक्षन्ति तेन पीवाञ शुनः सखः
  9 [भरद्वाज]
      नैतस्येह यथास्माकं बरह्म बन्धॊर अचेतसः
      शॊकॊ भार्यापवादेन तेन पीवाञ शुनः सखः
  10 [गौतम]
     नैतस्येह यथास्माकं तरिकौशेयं हि राङ्कवम
     एकैकं वै तरिवार्षीयं तेन पीवाञ शुनः सखः
 11 [भ]
     अथ देष्ट्वा परिव्राट स तान महर्षीञ शुनः सखः
     अभिगम्य यथान्यायं पाणिस्पर्शम अथाचरत
 12 परिचर्यां वने तां तु कषुत परतीघात कारिकाम
     अन्यॊन्येन निवेद्याथ परातिष्ठन्त सहैव ते
 13 एकनिश्चय कार्याश च वयचरन्त वनानि ते
     आददानाः समुद्धृत्य मूलानि च फलानि च
 14 कदा चिद विचरन्तस ते वृक्षैर अविरलैर वृताम
     शुचि वारि परसन्नॊदां ददृशुः पद्मिनीं शुभाम
 15 बालादित्य वपुः परख्यैः पुष्करैर उपशॊभिताम
     वैदूर्यवर्णसदृशैः पद्मपत्रैर अथावृताम
 16 नानाविधैश च विहगैर जलप्रकर सेविभिः
     एकद्वाराम अनादेयां सूपतीर्थाम अकर्दमाम
 17 वृषादर्भि परयुक्ता तु कृत्या विकृतदर्शना
     यातुधानीति विख्याता पद्मिनीं ताम अरक्षत
 18 शुनः सख सहायास तु बिसार्थं ते महर्षयः
     पद्मिनीम अभिजग्मुस ते सर्वे कृत्याभिरक्षिताम
 19 ततस ते यातुधानीं तां दृष्ट्वा विकृतदर्शनाम
     सथितां कमलिनी तीरे कृत्याम ऊचुर महर्षयः
 20 एका तिष्ठसि का नु तवं कस्यार्थे किं परयॊजनम
     पद्मिनी तीरम आश्रित्य बरूहि तवं किं चिकीर्षसि
 21 [यातुधान]
     यास्मि सास्म्य अनुयॊगॊ मे न कर्तव्यः कथं चन
     आरक्षिणीं मां पद्मिन्या वित्तसर्वे तपॊधनाः
 22 [रसयह]
     सर्व एव कषुधार्था सम न चान्यत किं चिद अस्ति नः
     भवत्याः संमते सर्वे गृह्णीमहि बिसान्य उत
 23 [यातुधान]
     समयेन बिसानीतॊ गृह्णीध्वं कामकारतः
     एकैकॊ नाम मे परॊक्त्वा ततॊ गृह्णीत माचिरम
 24 [भ]
     विज्ञाय यातुधानीं तां कृत्याम ऋषिवधैषिणीम
     अत्रिः कषुधा परीतात्मा ततॊ वचनम अब्रवीत
 25 अरात्रिर अत्रेः सा रात्रिर यां नाधीते तरिर अद्य वै
     अरात्रिर अत्रिर इत्य एव नाम मे विद्धि शॊभने
 26 [या]
     यथॊदाहृतम एतत ते मयि नाम महामुने
     दुर्धार्यम एतन मनसा गच्छावतर पद्मिनीम
 27 [वसिस्ठ]
     वसिष्ठॊ ऽसमि वरिष्ठॊ ऽसमि वसे वासं गृहेष्व अपि
     वसिष्ठत्वाच च वासाच च वसिष्ठ इति विद्धि माम
 28 [या]
     नाम नैरुक्तम एतत ते दुःखव्याभाषिताक्षरम
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 29 [कष्यप]
     कुलं कुलं च कुपपः कुपयः कश्यपॊ दविजः
     काश्यः काशनिकाशत्वाद एतन मे नाम धारय
 30 [या]
     यथॊदाहृतम एतत ते मयि नाम महामुने
     दुर्धार्यम एतन मनसा गच्छावतर पद्मिनीम
 31 [भरद्वाज]
     भरे सुतान भरे शिष्यान भरे देवान भरे दविजान
     भरे भर्याम अनव्याजॊ भरद्वाजॊ ऽसमि शॊभने
 32 [या]
     नाम नैरुक्तम एतत ते दुःखव्याभाषिताक्षरम
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 33 [गौतम]
     गॊदमॊ दमगॊ ऽधूमॊ दमॊ दुर्दर्शनश च ते
     विद्धि मां गौतमं कृत्ये यातुधानि निबॊध मे
 34 [या]
     यथॊदाहृतम एतत ते मयि नाम महामुने
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 35 [विष्वामित्र]
     विश्वे देवाश च मे मित्रं मित्रम अस्मि गवां तथा
     विश्वा मित्रम इति खयातं यातुधानि निबॊध मे
 36 [या]
     नाम नैरुक्तम एतत ते दुःखव्याभाषिताक्षरम
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 37 [जमदग्नि]
     जाजमद्यजजा नाम मृजा माह जिजायिषे
     जमदग्निर इति खयातम अतॊ मां विद्धि शॊभने
 38 [या]
     यथॊदाहृतम एतत ते मयि नाम महामुने
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 39 [अरुन्धती]
     धरां धरित्रीं वसुधां भर्तुस तिष्ठाम्य अनन्तरम
     मनॊ ऽनुरुन्धती भर्तुर इति मां विद्ध्य अरुन्धतीम
 40 [या]
     नाम नैरुक्तम एतत ते दुःखव्याभाषिताक्षरम
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 41 [गण्डा]
     गण्डं गण्डं गतवती गण्डगण्डेति संज्ञिता
     गण्डगण्डेव गण्डेति विद्धि मानल संभवे
 42 [या]
     नाम नैरुक्तम एतत ते दुःखव्याभाषिताक्षरम
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 43 [पषुसख]
     सखा सखे यः सख्येयः पशूनां च सखा सदा
     गौणं पशुसखेत्य एवं विद्धि माम अग्निसंभवे
 44 [या]
     नाम नैरुक्तम एतत ते दुःखव्याभाषिताक्षरम
     नैतद धारयितुं शक्यं गच्छावतर पद्मिनीम
 45 एभिर उक्तं यथा नाम नाहं वक्तुम इहॊत्सहे
     शुनः सख सखायं मां यातुधान्य उपधारय
 46 [या]
     नाम ते ऽवयक्तम उक्तं वै वाक्यं संदिग्धया गिरा
     तस्मात सकृद इदानीं तवं बरूहि यन नाम ते दविज
 47 सकृद उक्तं मया नाम न गृहीतं यदा तवया
     तस्मात तरिदण्ड्दाभिहता गच्छ भस्मेति माचिरम
 48 [भ]
     सा बरह्मदण्डकल्पेन तेन मूर्ध्नि हता तदा
     कृत्या पपात मेदिन्यां भस्मसाच च जगाम ह
 49 शुनः सखश च हत्वा तां यातुधानीं महाबलाम
     भुवि तरिदण्डं विष्टभ्य शाद्वले समुपाविशत
 50 ततस ते मुनयः सर्वे पुष्कराणि बिसानि च
     यथाकामम उपादाय समुत्तस्थुर मुदान्विताः
 51 शरमेण महता युक्तास ते बिसानि कलापशः
     तीरे निक्षिप्य पद्मिन्यास तर्पणं चक्रुर अम्भसा
 52 अथॊत्थाय जलात तस्मात सर्वे ते वै समागमन
     नापश्यंश चापि ते तानि बिसानि पुरुषर्षभ
 53 [रसयह]
     केन कषुधाभिभूतानाम अस्माकं पापकक्र्मणा
     नृशंसेनापनीतानि बिसान्य आहारकाङ्क्षिणाम
 54 ते शङ्कमानास तव अन्यॊन्यं पप्रच्छुर दविजसत्तमाः
     त ऊचुः शपथं सर्वे कुर्म इत्य अरिकर्शन
 55 त उक्त्वा बाढम इत्य एव सर्व एव शुनः सखम
     कषुधार्ताः सुपरिश्रान्ताः शपथायॊपचक्रमुः
 56 [अत्रि]
     स गां सपृशतु पादेन सूर्यं च परतिमेहतु
     अनध्यायेष्व अधीयीत बिस सतैन्यं करॊति यः
 57 [वसिस्ठ]
     अनध्याय परॊ लॊके शुनः स परिकर्षतु
     परिव्राट कामवृत्तॊ ऽसतु बिस सतैन्यं करॊति यः
 58 शरणागतं हन्तुमित्रं सवसुतां चॊपजीवतु
     अर्थान काङ्क्षतु कीनाशाद बिस सतैन्यं करॊति यः
 59 [कष्यप]
     सर्वत्र सर्वं पणतु नयासलॊपं करॊतु च
     कूटसाक्षित्वम अभ्येतु बिस सतैन्यं करॊति यः
 60 वृथा मांसं समश्नातु वृथा दानं करॊति च
     यातु सत्रियं दिवा चैव बिस सतैन्यं करॊति यः
 61 [भरद्वाज]
     नृशंसस तयक्तधर्मास तु सत्रीषु जञातिषु गॊषु च
     बराह्मणं चापि जयतां बिस सतैन्यं करॊति यः
 62 उपाध्यायम अधः कृत्वा ऋचॊ ऽधयेतु यजूंषि च
     जुहॊतु च स कक्षाग्नौ बिस सतैन्यं करॊति यः
 63 [जमदग्नि]
     पुरीषम उत्सृजत्व अप्सु हन्तुगां चापि दॊहिनीम
     अनृतौ मैथुनं यातु बिस सतैन्यं करॊति यः
 64 दवेष्यॊ भार्यॊपजीवी सयाद दूरबन्धुश च वैरवान
     अन्यॊन्यस्यातिथिश चास्तु बिस सतैन्यं करॊति यः
 65 [गौतम]
     अधीत्य वेदांस तयजतु तरीन अग्नीन अपविध्यतु
     विक्रीणातु तथा सॊमं बिस सतैन्यं करॊति यः
 66 उप पानप्लवे गरामे बराह्मणॊ वृषली पतिः
     तस्य सालॊक्यतां यातु बिस सतैन्यं करॊति यः
 67 [विष्वामित्र]
     जीवतॊ वै गुरून भृत्यान भरन्त्व अस्य परे जनाः
     अगतिर बहुपुत्रः सयाद बिस सतैन्यं करॊति यः
 68 अशुचिर बरह्म कूटॊ ऽसतु ऋद्ध्या चैवाप्य अहं कृतः
     कर्षकॊ मत्सरी चास्तु बिस सतैन्यं करॊति यः
 69 वर्षान करॊतु भृतकॊ राज्ञश चास्तु पुरॊहितः
     अयाज्यस्य भवेद ऋत्विग बिस सतैन्यं करॊति यः
 70 [अरुन्धती]
     नित्यं परिवदेच छवश्रूं भर्तुर भवतु दुर्मनाः
     एका सवादु समश्नातु बिस सतैन्यं करॊति या
 71 जञातीनां गृहमेध्यस्था सक्तून अत्तु दिनक्षये
     अभाग्यावीरसूर अस्तु बिस सतैन्यं करॊति याः
 72 [गण्डा]
     अनृतं भाषतु सदा साधुभिश च विरुध्यतु
     ददातु कन्यां शुक्लेन बिस सतैन्यं करॊति याः
 73 साधयित्वा सवयं पराशेद दास्ये जीवतु चैव ह
     विकर्मणा परमीयेत बिस सतैन्यं करॊति या
 74 [पषुसख]
     दास्य एव परजायेत सॊ ऽपरसूतिर अकिंचनः
     दैवतेष्व अनमः कारॊ बिस सतैन्यं करॊति यः
 75 अध्वर्यवे दुहितरं ददातुच; छन्दॊगे वा चरितब्रह्म चर्ये
     आथर्वणं वेदम अधीत्य विप्रः; सनायीत यॊ वै हरते बिसानि
 76 [रसयह]
     इष्टम एतद दविजातीनां यॊ ऽयं ते शपथः कृतः
     तवया कृतं बिस सतैन्यं सर्वेषां नः शुनः सुख
 77 [षुन]
     नयस्तम आद्यम अपश्यद्भिर यद उक्तं कृतकर्मभिः
     सत्यम एतन न मिथ्यैतद बिस सतैन्यं कृतं मया
 78 मया हय अन्तर्हितानीह बिसानीमानि पश्यत
     परीक्षार्थं भगवतां कृतम एतन मयानघाः
     रक्षणार्थं च सर्वेषां भवताम अहम आगतः
 79 यातुधानी हय अतिक्रुद्धा कृत्यैषा वॊ वधैषिणी
     वृषादर्भि परयुक्तैषा निहता मे तपॊधनाः
 80 दुष्टा हिंष्याद इयं पापा युष्मान परत्य अग्निसंभवा
     तस्माद अस्म्य आगतॊ विप्रा वासवं मां निबॊधत
 81 अलॊभाद अक्षया लॊकाः पराप्ता वः सार्वकामिकाः
     उत्तिष्ठध्वम इतः कषिप्रं तान अवाप्नुत वै दविजाः
 82 [भ]
     ततॊ महर्षयः परीतास तथेत्य उक्त्वा पुरंदरम
     सहैव तरिदशेन्द्रेण सर्वे जग्मुस तरिविष्टपम
 83 एवम एते महात्मानॊ भॊगैर बहुविधैर अपि
     कषुधा परमया युक्ताश छन्द्यमाना महात्मभिः
     नैव लॊभं तदा चक्रुस ततः सवर्गम अवाप्नुवन
 84 तस्मात सर्वास्व अवस्थासु नरॊ लॊभं विवर्जयेत
     एष धर्मः परॊ राजन्न अलॊभ इति विश्रुतः
 85 इदं नरः सच चरितं समवायेषु कीर्तयेत
     सुखभागी च भवति न च दुर्गाण्य अवाप्नुते
 86 परीयन्ते पितरश चास्य ऋषयॊ देवतास तथा
     यशॊधर्मार्थभागी च भवति परेत्य मानवः
  1 [bh]
      athātri pramukhā rājan vane tasmin maharṣayaḥ
      vyacaran bhakṣayanto vai mūlāni ca phalāni ca
  2 athāpaśyan supīnāṃsa pāṇipādamukhodaram
      parivrajantaṃ sthūlāṅgaṃ parivrājaṃ śunaḥ sakham
  3 arundhatī tu taṃ dṛṣṭvā sarvāṅgopacitaṃ śubhā
      bhavitāro bhavanto vai naivam ity abravīd ṛṣīn
  4 [vasisṭha]
      naitasyeha yathāsmākam agnihotram anirhutam
      sāyaṃprātaś ca hotavyaṃ tena pīvāñ śunaḥ sakhaḥ
  5 [atri]
      naitasyeha yathāsmākaṃ kṣudhā vīryaṃ samāhatam
      kṛcchrādhītaṃ pranaṣṭaṃ ca tena pīvāñ śunaḥ sakhaḥ
  6 [viṣvāmitra]
      naitasyeha yathāsmākaṃ śaśvac chāstraṃ jarad gavaḥ
      alasaḥ kṣut paro mūrkhas tena pīvāñ śunaḥ sakhaḥ
  7 [jamadagni]
      naitasyeha yathāsmākaṃ bhaktam indhanam eva ca
      saṃcintya vārṣikaṃ kiṃ cit tena pīvāṭ śunaḥ sakhaḥ
  8 [kaṣyapa]
      naitasyeha yathāsmākaṃ catvāraś ca sahodarāḥ
      dehi dehīti bhikṣanti tena pīvāñ śunaḥ sakhaḥ
  9 [bharadvāja]
      naitasyeha yathāsmākaṃ brahma bandhor acetasaḥ
      śoko bhāryāpavādena tena pīvāñ śunaḥ sakhaḥ
  10 [gautama]
     naitasyeha yathāsmākaṃ trikauśeyaṃ hi rāṅkavam
     ekaikaṃ vai trivārṣīyaṃ tena pīvāñ śunaḥ sakhaḥ
 11 [bh]
     atha deṣṭvā parivrāṭ sa tān maharṣīñ śunaḥ sakhaḥ
     abhigamya yathānyāyaṃ pāṇisparśam athācarat
 12 paricaryāṃ vane tāṃ tu kṣut pratīghāta kārikām
     anyonyena nivedyātha prātiṣṭhanta sahaiva te
 13 ekaniścaya kāryāś ca vyacaranta vanāni te
     ādadānāḥ samuddhṛtya mūlāni ca phalāni ca
 14 kadā cid vicarantas te vṛkṣair aviralair vṛtām
     śuci vāri prasannodāṃ dadṛśuḥ padminīṃ śubhām
 15 bālāditya vapuḥ prakhyaiḥ puṣkarair upaśobhitām
     vaidūryavarṇasadṛśaiḥ padmapatrair athāvṛtām
 16 nānāvidhaiś ca vihagair jalaprakara sevibhiḥ
     ekadvārām anādeyāṃ sūpatīrthām akardamām
 17 vṛṣādarbhi prayuktā tu kṛtyā vikṛtadarśanā
     yātudhānīti vikhyātā padminīṃ tām arakṣata
 18 śunaḥ sakha sahāyās tu bisārthaṃ te maharṣayaḥ
     padminīm abhijagmus te sarve kṛtyābhirakṣitām
 19 tatas te yātudhānīṃ tāṃ dṛṣṭvā vikṛtadarśanām
     sthitāṃ kamalinī tīre kṛtyām ūcur maharṣayaḥ
 20 ekā tiṣṭhasi kā nu tvaṃ kasyārthe kiṃ prayojanam
     padminī tīram āśritya brūhi tvaṃ kiṃ cikīrṣasi
 21 [yātudhāna]
     yāsmi sāsmy anuyogo me na kartavyaḥ kathaṃ cana
     ārakṣiṇīṃ māṃ padminyā vittasarve tapodhanāḥ
 22 [rsayah]
     sarva eva kṣudhārthā sma na cānyat kiṃ cid asti naḥ
     bhavatyāḥ saṃmate sarve gṛhṇīmahi bisāny uta
 23 [yātudhāna]
     samayena bisānīto gṛhṇīdhvaṃ kāmakārataḥ
     ekaiko nāma me proktvā tato gṛhṇīta māciram
 24 [bh]
     vijñāya yātudhānīṃ tāṃ kṛtyām ṛṣivadhaiṣiṇīm
     atriḥ kṣudhā parītātmā tato vacanam abravīt
 25 arātrir atreḥ sā rātrir yāṃ nādhīte trir adya vai
     arātrir atrir ity eva nāma me viddhi śobhane
 26 [yā]
     yathodāhṛtam etat te mayi nāma mahāmune
     durdhāryam etan manasā gacchāvatara padminīm
 27 [vasisṭha]
     vasiṣṭho 'smi variṣṭho 'smi vase vāsaṃ gṛheṣv api
     vasiṣṭhatvāc ca vāsāc ca vasiṣṭha iti viddhi mām
 28 [yā]
     nāma nairuktam etat te duḥkhavyābhāṣitākṣaram
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 29 [kaṣyapa]
     kulaṃ kulaṃ ca kupapaḥ kupayaḥ kaśyapo dvijaḥ
     kāśyaḥ kāśanikāśatvād etan me nāma dhāraya
 30 [yā]
     yathodāhṛtam etat te mayi nāma mahāmune
     durdhāryam etan manasā gacchāvatara padminīm
 31 [bharadvāja]
     bhare sutān bhare śiṣyān bhare devān bhare dvijān
     bhare bharyām anavyājo bharadvājo 'smi śobhane
 32 [yā]
     nāma nairuktam etat te duḥkhavyābhāṣitākṣaram
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 33 [gautama]
     godamo damago 'dhūmo damo durdarśanaś ca te
     viddhi māṃ gautamaṃ kṛtye yātudhāni nibodha me
 34 [yā]
     yathodāhṛtam etat te mayi nāma mahāmune
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 35 [viṣvāmitra]
     viśve devāś ca me mitraṃ mitram asmi gavāṃ tathā
     viśvā mitram iti khyātaṃ yātudhāni nibodha me
 36 [yā]
     nāma nairuktam etat te duḥkhavyābhāṣitākṣaram
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 37 [jamadagni]
     jājamadyajajā nāma mṛjā māha jijāyiṣe
     jamadagnir iti khyātam ato māṃ viddhi śobhane
 38 [yā]
     yathodāhṛtam etat te mayi nāma mahāmune
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 39 [arundhatī]
     dharāṃ dharitrīṃ vasudhāṃ bhartus tiṣṭhāmy anantaram
     mano 'nurundhatī bhartur iti māṃ viddhy arundhatīm
 40 [yā]
     nāma nairuktam etat te duḥkhavyābhāṣitākṣaram
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 41 [gaṇḍā]
     gaṇḍaṃ gaṇḍaṃ gatavatī gaṇḍagaṇḍeti saṃjñitā
     gaṇḍagaṇḍeva gaṇḍeti viddhi mānala saṃbhave
 42 [yā]
     nāma nairuktam etat te duḥkhavyābhāṣitākṣaram
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 43 [paṣusakha]
     sakhā sakhe yaḥ sakhyeyaḥ paśūnāṃ ca sakhā sadā
     gauṇaṃ paśusakhety evaṃ viddhi mām agnisaṃbhave
 44 [yā]
     nāma nairuktam etat te duḥkhavyābhāṣitākṣaram
     naitad dhārayituṃ śakyaṃ gacchāvatara padminīm
 45 ebhir uktaṃ yathā nāma nāhaṃ vaktum ihotsahe
     śunaḥ sakha sakhāyaṃ māṃ yātudhāny upadhāraya
 46 [yā]
     nāma te 'vyaktam uktaṃ vai vākyaṃ saṃdigdhayā girā
     tasmāt sakṛd idānīṃ tvaṃ brūhi yan nāma te dvija
 47 sakṛd uktaṃ mayā nāma na gṛhītaṃ yadā tvayā
     tasmāt tridaṇḍdābhihatā gaccha bhasmeti māciram
 48 [bh]
     sā brahmadaṇḍakalpena tena mūrdhni hatā tadā
     kṛtyā papāta medinyāṃ bhasmasāc ca jagāma ha
 49 śunaḥ sakhaś ca hatvā tāṃ yātudhānīṃ mahābalām
     bhuvi tridaṇḍaṃ viṣṭabhya śādvale samupāviśat
 50 tatas te munayaḥ sarve puṣkarāṇi bisāni ca
     yathākāmam upādāya samuttasthur mudānvitāḥ
 51 śrameṇa mahatā yuktās te bisāni kalāpaśaḥ
     tīre nikṣipya padminyās tarpaṇaṃ cakrur ambhasā
 52 athotthāya jalāt tasmāt sarve te vai samāgaman
     nāpaśyaṃś cāpi te tāni bisāni puruṣarṣabha
 53 [rsayah]
     kena kṣudhābhibhūtānām asmākaṃ pāpakakrmaṇā
     nṛśaṃsenāpanītāni bisāny āhārakāṅkṣiṇām
 54 te śaṅkamānās tv anyonyaṃ papracchur dvijasattamāḥ
     ta ūcuḥ śapathaṃ sarve kurma ity arikarśana
 55 ta uktvā bāḍham ity eva sarva eva śunaḥ sakham
     kṣudhārtāḥ supariśrāntāḥ śapathāyopacakramuḥ
 56 [atri]
     sa gāṃ spṛśatu pādena sūryaṃ ca pratimehatu
     anadhyāyeṣv adhīyīta bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 57 [vasisṭha]
     anadhyāya paro loke śunaḥ sa parikarṣatu
     parivrāṭ kāmavṛtto 'stu bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 58 śaraṇāgataṃ hantumitraṃ svasutāṃ copajīvatu
     arthān kāṅkṣatu kīnāśād bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 59 [kaṣyapa]
     sarvatra sarvaṃ paṇatu nyāsalopaṃ karotu ca
     kūṭasākṣitvam abhyetu bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 60 vṛthā māṃsaṃ samaśnātu vṛthā dānaṃ karoti ca
     yātu striyaṃ divā caiva bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 61 [bharadvāja]
     nṛśaṃsas tyaktadharmās tu strīṣu jñātiṣu goṣu ca
     brāhmaṇaṃ cāpi jayatāṃ bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 62 upādhyāyam adhaḥ kṛtvā ṛco 'dhyetu yajūṃṣi ca
     juhotu ca sa kakṣāgnau bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 63 [jamadagni]
     purīṣam utsṛjatv apsu hantugāṃ cāpi dohinīm
     anṛtau maithunaṃ yātu bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 64 dveṣyo bhāryopajīvī syād dūrabandhuś ca vairavān
     anyonyasyātithiś cāstu bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 65 [gautama]
     adhītya vedāṃs tyajatu trīn agnīn apavidhyatu
     vikrīṇātu tathā somaṃ bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 66 upa pānaplave grāme brāhmaṇo vṛṣalī patiḥ
     tasya sālokyatāṃ yātu bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 67 [viṣvāmitra]
     jīvato vai gurūn bhṛtyān bharantv asya pare janāḥ
     agatir bahuputraḥ syād bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 68 aśucir brahma kūṭo 'stu ṛddhyā caivāpy ahaṃ kṛtaḥ
     karṣako matsarī cāstu bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 69 varṣān karotu bhṛtako rājñaś cāstu purohitaḥ
     ayājyasya bhaved ṛtvig bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 70 [arundhatī]
     nityaṃ parivadec chvaśrūṃ bhartur bhavatu durmanāḥ
     ekā svādu samaśnātu bisa stainyaṃ karoti yā
 71 jñātīnāṃ gṛhamedhyasthā saktūn attu dinakṣaye
     abhāgyāvīrasūr astu bisa stainyaṃ karoti yāḥ
 72 [gaṇḍā]
     anṛtaṃ bhāṣatu sadā sādhubhiś ca virudhyatu
     dadātu kanyāṃ śuklena bisa stainyaṃ karoti yāḥ
 73 sādhayitvā svayaṃ prāśed dāsye jīvatu caiva ha
     vikarmaṇā pramīyeta bisa stainyaṃ karoti yā
 74 [paṣusakha]
     dāsya eva prajāyeta so 'prasūtir akiṃcanaḥ
     daivateṣv anamaḥ kāro bisa stainyaṃ karoti yaḥ
 75 adhvaryave duhitaraṃ dadātuc; chandoge vā caritabrahma carye
     ātharvaṇaṃ vedam adhītya vipraḥ; snāyīta yo vai harate bisāni
 76 [rsayah]
     iṣṭam etad dvijātīnāṃ yo 'yaṃ te śapathaḥ kṛtaḥ
     tvayā kṛtaṃ bisa stainyaṃ sarveṣāṃ naḥ śunaḥ sukha
 77 [ṣun]
     nyastam ādyam apaśyadbhir yad uktaṃ kṛtakarmabhiḥ
     satyam etan na mithyaitad bisa stainyaṃ kṛtaṃ mayā
 78 mayā hy antarhitānīha bisānīmāni paśyata
     parīkṣārthaṃ bhagavatāṃ kṛtam etan mayānaghāḥ
     rakṣaṇārthaṃ ca sarveṣāṃ bhavatām aham āgataḥ
 79 yātudhānī hy atikruddhā kṛtyaiṣā vo vadhaiṣiṇī
     vṛṣādarbhi prayuktaiṣā nihatā me tapodhanāḥ
 80 duṣṭā hiṃṣyād iyaṃ pāpā yuṣmān praty agnisaṃbhavā
     tasmād asmy āgato viprā vāsavaṃ māṃ nibodhata
 81 alobhād akṣayā lokāḥ prāptā vaḥ sārvakāmikāḥ
     uttiṣṭhadhvam itaḥ kṣipraṃ tān avāpnuta vai dvijāḥ
 82 [bh]
     tato maharṣayaḥ prītās tathety uktvā puraṃdaram
     sahaiva tridaśendreṇa sarve jagmus triviṣṭapam
 83 evam ete mahātmāno bhogair bahuvidhair api
     kṣudhā paramayā yuktāś chandyamānā mahātmabhiḥ
     naiva lobhaṃ tadā cakrus tataḥ svargam avāpnuvan
 84 tasmāt sarvāsv avasthāsu naro lobhaṃ vivarjayet
     eṣa dharmaḥ paro rājann alobha iti viśrutaḥ
 85 idaṃ naraḥ sac caritaṃ samavāyeṣu kīrtayet
     sukhabhāgī ca bhavati na ca durgāṇy avāpnute
 86 prīyante pitaraś cāsya ṛṣayo devatās tathā
     yaśodharmārthabhāgī ca bhavati pretya mānavaḥ


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