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Book 13 in English

The Mahabharata in Sanskrit

Book 13
Chapter 96

  1 [भ]
      अत्रैवॊदाहरन्तीमम इतिहासं पुरातनम
      यद्वृत्तं तीर्थयात्रायां शपथं परति तच छृणु
  2 पुष्कर अर्थं कृतं सतैन्यं पुरा भरतसत्तम
      राजर्षिभिर महाराज तथैव च दविजर्षिभिः
  3 ऋषयः समेताः पश्चिमे वै परभासे; समागता मन्त्रम अमन्त्रयन्त
      चराम सर्वे पृथिवीं पुण्यतीर्थां; तन नः कार्यं हन्त गच्छाम सर्वे
  4 शुक्रॊ ऽङगिराश चैव कविश च विद्वांस; तथागस्त्यॊ नारद पर्वतौ च
      भृगुर वसिष्ठः कश्यपॊ गौतमश च; विश्वामित्रॊ जमदग्निश च राजन
  5 ऋषिस तथा गालवॊ ऽथाष्टकश च; भरद्वाजॊ ऽरुन्धती वालखिल्याः
      शिबिर दिलीपॊ नहुषॊ ऽमबरीषॊ; राजा ययातिर धुन्धुमारॊ ऽथ पूरुः
  6 जग्मुः पुरस्कृत्य महानुभावं; शतक्रतुं वृत्रहणं नरेन्द्र
      तीर्थानि सर्वाणि परिक्रमन्तॊ; माध्यां ययुः कौशिकीं पुण्यतीर्थाम
  7 सर्वेषु तीर्थेष्व अथ धूतपापा; जग्मुस ततॊ बरह्मसरः सुपुण्यम
      देवस्य तीर्थे जलम अग्निकल्पा; विगाह्य ते भुक्तबिस परसूनाः
  8 के चिद बिसान्य अखनंस तत्र राजन्न; अन्ये मृणालान्य अखनंस तत्र विप्राः
      अथापश्यन पुष्करं ते हरियन्तं; हरदाद अगस्त्येन समुद्धृतं वै
  9 तान आह सर्वान ऋषिमुख्यान अगस्त्यः; केनादत्तं पुष्करं मे सुजातम
      युष्माञ शङ्के दीयतां पुष्करं मे; न वै भवन्तॊ हर्तुम अर्हन्ति पद्मम
  10 शृणॊमि कालॊ हिंसते धर्मवीर्यं; सेयं पराप्ता वर्धते धर्मपीडा
     पुराधर्मॊ वर्धते नेह यावत; तावद गच्छामि परलॊकं चिराय
 11 पुरा वेदान बराह्मणा गराममध्ये; घुष्ट सवरा वृषलाञ शरावयन्ति
     पुरा राजा वयवहारान अधर्म्यान; पश्यत्य अहं परलॊकं वरजामि
 12 पुरावरान परत्यवरान गरीयसॊ; यावन नरा नावमंस्यन्ति सर्वे
     तमॊत्तरं यावद इदं न वर्तते; तावद वरजामि परलॊकं चिराय
 13 पुरा परपश्यामि परेण मर्त्यान; बलीयसा दुर्बलान भुज्यमानान
     तस्माद यास्यामि परलॊकं चिराय; न हय उत्सहे दरष्टुम ईदृङ नृलॊके
 14 तम आहुर आर्ता ऋषयॊ महर्षिं; न ते वयं पुष्करं चॊरयामः
     मिथ्याभिषङ्गॊ भवता न कार्यः; शपाम तीक्ष्णाञ शपथान महर्षे
 15 ते निश्चितास तत्र महर्षयस तु; संमन्यन्तॊ धर्मम एवं नरेन्द्र
     ततॊ ऽशपञ शपथान पर्ययेण; सहैव ते पार्थिव पुत्रपौत्रैः
 16 [भृगु]
     परत्याक्रॊशेद इहाक्रुष्टस ताडितः परतिताडयेत
     खादेच च पृष्ठमांसानि यस ते हरति पुष्करम
 17 [वसिस्ठ]
     अस्वाध्याय परॊ लॊके शवानं च परिकर्षतु
     पुरे च भिक्षुर भवतु यस ते हरति पुष्करम
 18 [कष्यप]
     सर्वत्र सर्वं पणतु नयासे लॊभं करॊतु च
     कूटसाक्षित्वम अभ्येतु यस ते हरति पुष्करम
 19 [गौतम]
     जीवत्व अहं कृतॊ बुद्ध्या विपणत्व अधमेन सः
     कर्षकॊ मत्सरी चास्तु यस ते हरति पुष्करम
 20 [अन्गिरस]
     अशुचिर बरह्म कूटॊ ऽसतु शवानं च परिकर्षतु
     बरह्म हानि कृतिश चास्तु यस ते हरति पुष्करम
 21 [धुन्धुमार]
     अकृतज्ञॊ ऽसतु मित्राणां शूद्रायां तु परजायतु
     एकः संपन्नम अश्नातु यस ते हरति पुष्करम
 22 [पूरु]
     चिकित्सायां परचरतु भार्यया चैव पुष्यतु
     शवशुरात तस्य वृत्तिः सयाद यस ते हरति पुष्करम
 23 [दिलीप]
     उदपानप्लवे गरामे बराह्मणॊ वृषली पतिः
     तस्य लॊभान स वरजतु यस ते हरति पुष्करम
 24 [षुक्र]
     पृष्ठमांसं समश्नातु दिवा गच्छतु मैथुनम
     परेष्यॊ भवतु राज्ञश च यस ते हरति पुष्करम
 25 [जमदग्नि]
     अनध्यायेष्व अधीयीत मित्रं शराद्धे च भॊजयेत
     शराद्धे शूद्रस्य चाश्नीयाद यस ते हरति पुष्करम
 26 [षिबि]
     अनाहिताग्निर मरियतां यज्ञे विघ्नं करॊतु च
     तपस्विभिर विरुध्येत यस ते हरति पुष्करम
 27 [ययाति]
     अनृतौ जटी वरतिन्यां वै भार्यायां संप्रजायतु
     निराकरॊतु वेदांश च यस ते हरति पुष्करम
 28 [नहुस]
     अतिथिं गृहस्थॊ नुदतु कामवृत्तॊ ऽसतु दीक्षितः
     विद्यां परयच्छतु भृतॊ यस ते हरति पुष्करम
 29 [अम्बरीस]
     नृशंसस तयक्तधर्मॊ ऽसतु सत्रीषु जञातिषु गॊषु च
     बराह्मणं चापि जहतु यस ते हरति पुष्करम
 30 [नारद]
     गूढॊ ऽजञानी बहिः शास्त्रं पठतां विस्वरं पदम
     गरीयसॊ ऽवजानातु यस ते हरति पुष्करम
 31 [नाभाग]
     अनृतं भाषतु सदा सद्भिश चैव विरुध्यतु
     शुक्लेन कन्यां ददतु यस ते हरति पुष्करम
 32 [कवि]
     पदा स गां ताडयतु सूर्यं च परति मेहतु
     शरणागतं च तयजतु यस ते हरति पुष्करम
 33 [विष्वामित्र]
     करॊतु भृतकॊ ऽवर्षां राज्ञश चास्तु पुरॊहितः
     ऋत्विग अस्तु हय अयाज्यस्य यस ते हरति पुष्करम
 34 [पर्वत]
     गरमे चाधिकृतः सॊ ऽसतु खरयानेन गच्छतु
     शुनः कर्षतु वृत्त्यर्थे यस ते हरति पुष्करम
 35 [भरद्वाज]
     सर्वपापसमादानं नृशंसे चानृते च यत
     तत तस्यास्तु सदा पापं यस ते हरति पुष्करम
 36 [अस्टक]
     स राजास्त्व अकृतप्रज्ञः कामवृत्तिश च पापकृत
     अधर्मेणानुशास्तूर्वीं यस ते हरति पुष्करम
 37 [गालव]
     पापिष्ठेभ्यस तव अनर्घार्हः स नरॊ ऽसतु सवपापकृत
     दत्त्वा दानं कीर्तयतु यस ते हरति पुष्करम
 38 [अरुन्धती]
     शवश्र्वापवादं वदतु भर्तुर भवतु दुर्मनाः
     एका सवादु समश्नातु या ते हरति पुष्करम
 39 [वालखिल्य]
     एकपादेन वृत्त्यर्थं गरामद्वारे स तिष्ठतु
     धर्मज्ञस तयक्तधर्मॊ ऽसतु यस ते हरति पुष्करम
 40 [पषुसख]
     अग्निहॊत्रम अनादृत्य सुखं सवपतु स दविजः
     परिव्राट कामवृत्तॊ ऽसतु यस ते हरति पुष्करम
 41 [सुरभी]
     बाल्वजेन निदानेन कांस्यं भवतु दॊहनम
     दुह्येत परवत्सेन या ते हरति पुष्करम
 42 [भ]
     ततस तु तैः शपथैः शप्यमानैर; नानाविधैर बहुभिः कौरवेन्द्र
     सहस्राक्षॊ देवराट संप्रहृष्टः; समीक्ष्य तं कॊपनं विप्रमुख्यम
 43 अथाब्रवीन मघवा परत्ययं सवं; समाभाष्य तम ऋषिं जातरॊषम
     बरह्मर्षिदेवर्षिनृपर्षिमध्ये; यत तन निबॊधेह ममाध्य राजन
 44 [षक्र]
     अध्वर्यवे दुहितरं ददातुच; छन्दॊगे वा चरितब्रह्म चर्ये
     आथर्वणं वेदम अधीत्य विप्रः; सनायेत यः पुष्करम आददाति
 45 सर्वान वेदान अधीयीत पुण्यशीलॊ ऽसतु धार्मिकः
     बरह्मणः सदनं यातु यस ते हरति पुष्करम
 46 [अगस्त्य]
     आशीर्वादस तवया परॊक्तः शपथॊ बलसूदन
     दीयतां पुष्करं मह्यम एष धर्मः सनातनः
 47 [इन्द्र]
     न मया भगवाँल लॊभाद धृतं पुष्करम अद्य वै
     धर्मं ते शरॊतुकामेन हृतं न करॊद्धुम अर्हति
 48 धर्मः शरुतः समुत्कर्षॊ धर्मसेतुर अनामयः
     आर्षॊ वै शाश्वतॊ नित्यम अव्ययॊ ऽयं मया शरुतः
 49 तद इदं गृह्यतां विद्वन पुष्करं मुनिसत्तम
     अतिक्रमं मे भगब्वन कषन्तुम अर्हस्य अनिन्दित
 50 इत्य उक्तः स महेन्द्रेण तपस्वी कॊपनॊ भृशम
     जग्राह पुष्करं धीमान परसन्नश चाभवन मुनिः
 51 परययुस ते ततॊ भूयस तीर्थानि वनगॊचराः
     पुण्यतीर्थेषु च तथा गात्राण्य आप्लावयन्ति ते
 52 आख्यानं य इदं युक्तः पठेत पर्वणि पर्वणि
     न मूर्खं जनयेत पुत्रं न भवेच च निराकृतिः
 53 न तम आपत सपृशेत का चिन न जवरॊ न रुजश च ह
     विरजाः शरेयसा युक्तः परेत्य सवर्गम अवाप्नुयात
 54 यश च शास्त्रम अनुध्यायेद ऋषिभिः परिपालितम
     स गच्छेद बरह्मणॊ लॊकम अव्ययं च नरॊत्तम
  1 [bh]
      atraivodāharantīmam itihāsaṃ purātanam
      yadvṛttaṃ tīrthayātrāyāṃ śapathaṃ prati tac chṛṇu
  2 puṣkar arthaṃ kṛtaṃ stainyaṃ purā bharatasattama
      rājarṣibhir mahārāja tathaiva ca dvijarṣibhiḥ
  3 ṛṣayaḥ sametāḥ paścime vai prabhāse; samāgatā mantram amantrayanta
      carāma sarve pṛthivīṃ puṇyatīrthāṃ; tan naḥ kāryaṃ hanta gacchāma sarve
  4 śukro 'ṅgirāś caiva kaviś ca vidvāṃs; tathāgastyo nārada parvatau ca
      bhṛgur vasiṣṭhaḥ kaśyapo gautamaś ca; viśvāmitro jamadagniś ca rājan
  5 ṛṣis tathā gālavo 'thāṣṭakaś ca; bharadvājo 'rundhatī vālakhilyāḥ
      śibir dilīpo nahuṣo 'mbarīṣo; rājā yayātir dhundhumāro 'tha pūruḥ
  6 jagmuḥ puraskṛtya mahānubhāvaṃ; śatakratuṃ vṛtrahaṇaṃ narendra
      tīrthāni sarvāṇi parikramanto; mādhyāṃ yayuḥ kauśikīṃ puṇyatīrthām
  7 sarveṣu tīrtheṣv atha dhūtapāpā; jagmus tato brahmasaraḥ supuṇyam
      devasya tīrthe jalam agnikalpā; vigāhya te bhuktabisa prasūnāḥ
  8 ke cid bisāny akhanaṃs tatra rājann; anye mṛṇālāny akhanaṃs tatra viprāḥ
      athāpaśyan puṣkaraṃ te hriyantaṃ; hradād agastyena samuddhṛtaṃ vai
  9 tān āha sarvān ṛṣimukhyān agastyaḥ; kenādattaṃ puṣkaraṃ me sujātam
      yuṣmāñ śaṅke dīyatāṃ puṣkaraṃ me; na vai bhavanto hartum arhanti padmam
  10 śṛṇomi kālo hiṃsate dharmavīryaṃ; seyaṃ prāptā vardhate dharmapīḍā
     purādharmo vardhate neha yāvat; tāvad gacchāmi paralokaṃ cirāya
 11 purā vedān brāhmaṇā grāmamadhye; ghuṣṭa svarā vṛṣalāñ śrāvayanti
     purā rājā vyavahārān adharmyān; paśyaty ahaṃ paralokaṃ vrajāmi
 12 purāvarān pratyavarān garīyaso; yāvan narā nāvamaṃsyanti sarve
     tamottaraṃ yāvad idaṃ na vartate; tāvad vrajāmi paralokaṃ cirāya
 13 purā prapaśyāmi pareṇa martyān; balīyasā durbalān bhujyamānān
     tasmād yāsyāmi paralokaṃ cirāya; na hy utsahe draṣṭum īdṛṅ nṛloke
 14 tam āhur ārtā ṛṣayo maharṣiṃ; na te vayaṃ puṣkaraṃ corayāmaḥ
     mithyābhiṣaṅgo bhavatā na kāryaḥ; śapāma tīkṣṇāñ śapathān maharṣe
 15 te niścitās tatra maharṣayas tu; saṃmanyanto dharmam evaṃ narendra
     tato 'śapañ śapathān paryayeṇa; sahaiva te pārthiva putrapautraiḥ
 16 [bhṛgu]
     pratyākrośed ihākruṣṭas tāḍitaḥ pratitāḍayet
     khādec ca pṛṣṭhamāṃsāni yas te harati puṣkaram
 17 [vasisṭha]
     asvādhyāya paro loke śvānaṃ ca parikarṣatu
     pure ca bhikṣur bhavatu yas te harati puṣkaram
 18 [kaṣyapa]
     sarvatra sarvaṃ paṇatu nyāse lobhaṃ karotu ca
     kūṭasākṣitvam abhyetu yas te harati puṣkaram
 19 [gautama]
     jīvatv ahaṃ kṛto buddhyā vipaṇatv adhamena saḥ
     karṣako matsarī cāstu yas te harati puṣkaram
 20 [angiras]
     aśucir brahma kūṭo 'stu śvānaṃ ca parikarṣatu
     brahma hāni kṛtiś cāstu yas te harati puṣkaram
 21 [dhundhumāra]
     akṛtajño 'stu mitrāṇāṃ śūdrāyāṃ tu prajāyatu
     ekaḥ saṃpannam aśnātu yas te harati puṣkaram
 22 [pūru]
     cikitsāyāṃ pracaratu bhāryayā caiva puṣyatu
     śvaśurāt tasya vṛttiḥ syād yas te harati puṣkaram
 23 [dilīpa]
     udapānaplave grāme brāhmaṇo vṛṣalī patiḥ
     tasya lobhān sa vrajatu yas te harati puṣkaram
 24 [ṣukra]
     pṛṣṭhamāṃsaṃ samaśnātu divā gacchatu maithunam
     preṣyo bhavatu rājñaś ca yas te harati puṣkaram
 25 [jamadagni]
     anadhyāyeṣv adhīyīta mitraṃ śrāddhe ca bhojayet
     śrāddhe śūdrasya cāśnīyād yas te harati puṣkaram
 26 [ṣibi]
     anāhitāgnir mriyatāṃ yajñe vighnaṃ karotu ca
     tapasvibhir virudhyeta yas te harati puṣkaram
 27 [yayāti]
     anṛtau jaṭī vratinyāṃ vai bhāryāyāṃ saṃprajāyatu
     nirākarotu vedāṃś ca yas te harati puṣkaram
 28 [nahusa]
     atithiṃ gṛhastho nudatu kāmavṛtto 'stu dīkṣitaḥ
     vidyāṃ prayacchatu bhṛto yas te harati puṣkaram
 29 [ambarīsa]
     nṛśaṃsas tyaktadharmo 'stu strīṣu jñātiṣu goṣu ca
     brāhmaṇaṃ cāpi jahatu yas te harati puṣkaram
 30 [nārada]
     gūḍho 'jñānī bahiḥ śāstraṃ paṭhatāṃ visvaraṃ padam
     garīyaso 'vajānātu yas te harati puṣkaram
 31 [nābhāga]
     anṛtaṃ bhāṣatu sadā sadbhiś caiva virudhyatu
     śuklena kanyāṃ dadatu yas te harati puṣkaram
 32 [kavi]
     padā sa gāṃ tāḍayatu sūryaṃ ca prati mehatu
     śaraṇāgataṃ ca tyajatu yas te harati puṣkaram
 33 [viṣvāmitra]
     karotu bhṛtako 'varṣāṃ rājñaś cāstu purohitaḥ
     ṛtvig astu hy ayājyasya yas te harati puṣkaram
 34 [parvata]
     grame cādhikṛtaḥ so 'stu kharayānena gacchatu
     śunaḥ karṣatu vṛttyarthe yas te harati puṣkaram
 35 [bharadvāja]
     sarvapāpasamādānaṃ nṛśaṃse cānṛte ca yat
     tat tasyāstu sadā pāpaṃ yas te harati puṣkaram
 36 [asṭaka]
     sa rājāstv akṛtaprajñaḥ kāmavṛttiś ca pāpakṛt
     adharmeṇānuśāstūrvīṃ yas te harati puṣkaram
 37 [gālava]
     pāpiṣṭhebhyas tv anarghārhaḥ sa naro 'stu svapāpakṛt
     dattvā dānaṃ kīrtayatu yas te harati puṣkaram
 38 [arundhatī]
     śvaśrvāpavādaṃ vadatu bhartur bhavatu durmanāḥ
     ekā svādu samaśnātu yā te harati puṣkaram
 39 [vālakhilya]
     ekapādena vṛttyarthaṃ grāmadvāre sa tiṣṭhatu
     dharmajñas tyaktadharmo 'stu yas te harati puṣkaram
 40 [paṣusakha]
     agnihotram anādṛtya sukhaṃ svapatu sa dvijaḥ
     parivrāṭ kāmavṛtto 'stu yas te harati puṣkaram
 41 [surabhī]
     bālvajena nidānena kāṃsyaṃ bhavatu dohanam
     duhyeta paravatsena yā te harati puṣkaram
 42 [bh]
     tatas tu taiḥ śapathaiḥ śapyamānair; nānāvidhair bahubhiḥ kauravendra
     sahasrākṣo devarāṭ saṃprahṛṣṭaḥ; samīkṣya taṃ kopanaṃ vipramukhyam
 43 athābravīn maghavā pratyayaṃ svaṃ; samābhāṣya tam ṛṣiṃ jātaroṣam
     brahmarṣidevarṣinṛparṣimadhye; yat tan nibodheha mamādhya rājan
 44 [ṣakra]
     adhvaryave duhitaraṃ dadātuc; chandoge vā caritabrahma carye
     ātharvaṇaṃ vedam adhītya vipraḥ; snāyeta yaḥ puṣkaram ādadāti
 45 sarvān vedān adhīyīta puṇyaśīlo 'stu dhārmikaḥ
     brahmaṇaḥ sadanaṃ yātu yas te harati puṣkaram
 46 [agastya]
     āśīrvādas tvayā proktaḥ śapatho balasūdana
     dīyatāṃ puṣkaraṃ mahyam eṣa dharmaḥ sanātanaḥ
 47 [indra]
     na mayā bhagavāṁl lobhād dhṛtaṃ puṣkaram adya vai
     dharmaṃ te śrotukāmena hṛtaṃ na kroddhum arhati
 48 dharmaḥ śrutaḥ samutkarṣo dharmasetur anāmayaḥ
     ārṣo vai śāśvato nityam avyayo 'yaṃ mayā śrutaḥ
 49 tad idaṃ gṛhyatāṃ vidvan puṣkaraṃ munisattama
     atikramaṃ me bhagabvan kṣantum arhasy anindita
 50 ity uktaḥ sa mahendreṇa tapasvī kopano bhṛśam
     jagrāha puṣkaraṃ dhīmān prasannaś cābhavan muniḥ
 51 prayayus te tato bhūyas tīrthāni vanagocarāḥ
     puṇyatīrtheṣu ca tathā gātrāṇy āplāvayanti te
 52 ākhyānaṃ ya idaṃ yuktaḥ paṭhet parvaṇi parvaṇi
     na mūrkhaṃ janayet putraṃ na bhavec ca nirākṛtiḥ
 53 na tam āpat spṛśet kā cin na jvaro na rujaś ca ha
     virajāḥ śreyasā yuktaḥ pretya svargam avāpnuyāt
 54 yaś ca śāstram anudhyāyed ṛṣibhiḥ paripālitam
     sa gacched brahmaṇo lokam avyayaṃ ca narottama


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